by Manjeev Vishvkarma
क्या ही होता जब लोग एक दूसरे की खामोशियों को पढ़ लेते, अनकही बातों को सुन लेते और अनदेखी चीजों पर विश्वास कर लेते!….. खामोशियों का मतलब शायद हमेशा किसी सवाल के जवाब का ना होना नहीं होता। बल्कि ये खामोशियां कभी-कभी किसी सवाल के जवाब न देने के सही तरीके होते हैं। खामोशियां खुद में विचार होती हैं, अभिव्यक्ति होती हैं बहुत चीजें खुद सह लेने वाला एक इंसानी ज़र्फ़ होता है। हां खामोशियां उलझने तो पैदा करती हैं पर फिर भी शायद खामोशियां ही बहुतों उलझनो के हल भी होती हैं। खामोशियां रंज होती हैं, खुद से खुद की, एक तलाश होती हैं खुद के अंदर दूसरों की, कुछ जवाब होते हैं जवाब न दिए जाने वाले प्रश्नों के। खामोशियां कहीं समुंदरों जैसी गहरी होती हैं यहां पर व्यक्ति खुद से खुद के अस्तित्व को टटोलता है, खोजता है और साथ ही वह स्वयं को दूसरों के साथ सहजता में पाता है। खामोशियां गुनगुनाहट होती हैं जो व्यक्ति स्वयं से करता है, यह गुस्से भी होते हैं जो व्यक्ति खुद से ही करता है शायद यह दूसरों से साझा न की जाने वालीं कुछ खुशियां भी होती हैं, जिसको दूसरे उतनी तवज्जों न दे पाए। खामोशी किसी मानवीय कुंठा से जन्मी कोई स्तब्ध चेतना नहीं, बल्कि एक आम इंसानी फितरत होती है जो उसे और ज्यादा जिंदा व समझदार बनाती है।




